चल चित्र : १९४२ - एक प्रेम कहानी
बोल: जावेद अख्तर
गीतकार: र.डी.बर्मन
गायक: शिवाजी चट्टोपाध्य
लम्बी हैं ग़म की शाम, मगर शाम ही तो हैं ॥ [फैज़ अहमद फैज़]
यह सफ़र बहुत हैं कठिन मगर, न उदास हो मेरे हमसफ़र
ये सितम की रात है ढलने को
है अँधेरा ग़म का पिघलने को
ज़रा देर इसमें लगे अगर,
ना उदास हो मेरे हमसफ़र॥
नहीं रहने वाली यह मुश्किलें की हैं अगले मोड़ पे मंजिलें
मेरी बात का तू यकीन कर (२)
ना उदास हो मेरे हमसफ़र ॥
कभी दूंद लेगा यह कारवाँ, वो नयी ज़मीन नया आसमान
जिसे दूंद्ती हैं तेरी नज़र
ना उदास हो मेरे हमसफ़र॥
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वैसे तो बहुत सारे गीत हैं जो हमें यह महसूस कराते हैं की ज़िन्दगी में ग़मों का होना तो ज़ाहिर हैं , पर असल बात हैं उन्ही ग़मों पर विजय प्राप्त कर पाना | असल बात हैं अपनी उमीदों को दायरों में न बाँद्ते हुए उन्हें उड़ने की क्षमता दे पाना । चलिए इसी बात पर एक आखरी गीत सुन ले। यह गाना हमने आज ही सुना और इस गाने के बोल ने हमारे ह्रदय को छू लिया।
चलचित्र: Rocket Singh (2009)
बोल: जयदीप सहनी
गीतकार: सलीम सुलेमान
गायक: सलीम मर्चंट
उड़ने दो ..
पंखों को, हवा ज़रा सी लगने दो
दिल बोले सोया था अब जगने दो
दिल दिल में हैं दिल की तमन्ना सौ
दो सौ हो चलो ज़रा सा तपने दो
उड़ने दो.. पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो।
धूप खिली जिस्म गरम सा है
सूरज यहीं यह भरम सा है
बिखरी हुयी राहें हजारों सौ
थामो कोई फिर भटकने दो
उड़ने दो.. पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो।
दिल की पतंग चाहों में गोटे खाती है
ढील तोह दो देखो कहाँ पे जाती है
उलझे नहीं तो कैसे सुलझोगे
बिखरे नहीं तो कैसे निखरोगे
उड़ने दो.. पंखों को हवा ज़रा ऐसे लगने दो।
हवा ज़रा सी लगने दो॥
उलझे नहीं तो कैसे सुल्झोगे?
बिखरे नहीं तो कैसे निखरोगे ?इन दो पंक्तियों में शायद कवी ने बड़ी ही खूबसूरती से अपनी बात हम तक पहुंचाने की कोशिश की हैं. उम्मीद हैं आपको यह गाने पसंद आये होंगे. फिर मिलेंगे कुछ सुनेहेरे गीतों के माध्यम से , नमस्कार।